ये चार अनुभव मृत्यु के करीब जाकर या केवल उसके बाद ही महसूस किए जा सकते हैं
मृत्यु के बाद के अनुभव: मृत्यु बड़े-बड़े ज्ञानियों तक के लिए एक रहस्यमयी चीज है। किसी के लिए भी यह पुख्ता तौर पर बता पाना संभव नहीं है कि मरने के बाद क्या होता है।
दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने मरने के बेहद करीब का अपना अनुभव बताया है जो बहुत ही दुर्लभ अनुभव है और उनकी बातों से ऐसा महसूस होता है कि मृत्यु के बाद भी दूसरे आयाम में किसी और ऊर्जा का अस्तित्व है। ये उन लोगों का अनुभव है जिन्हें मेडिकल रूप से मृत घोषित कर दिया गया था लेकिन कुछ क्षणों बाद ही वे पुन: जीवंत हो गये। कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने अपने शरीर से बाहर अपनी चेतना के होने का अनुभव किया। अर्थात् उनका शरीर निष्किय था लेकिन वे चेतनात्मक रूप से शरीर से अलग और सचेत थे। मैं इस प्रकार की घटनाओं की चर्चा इसलिए कर रही क्योंकि ये कुछ लोग मौत के इतने करीब से वापस लौटे हैं, जहाँ से लौटना लगभग नामुमकिन है और सबके साथ मृत्यु का अनुभव अलग-अलग रहा। तो, चलिए जानते हैं ऐसे ही 4 अनुभवों की झलक जो लोगों को मौत के बेहद करीब पहुंचने पर मिला है
1. मृत प्रियजनों या मार्गदर्शकों से मुलाकात
इस तरह के अनुभव की कोई वैज्ञानिक व्याख्या तो नहीं है लेकिन अध्यात्म की नजर से इसे तर्कपूर्ण समझा जा सकता है। अध्यात्म यह मानता है कि चेतना शरीर से अलग हो सकती है और फिर वापस से शरीर में प्रवेश कर सकती है। कई लोगों ने ये दावा किया है कि जब उनका शरीर कोमा में था, तो उनकी चेतना ने दूसरे आयाम तक की यात्रा की जहाँ उन्हें अपना कोई करीबी या कोई मार्गदर्शक मिला जिसकी मृत्यु हो चुकी थी और जिन्होंने उन्हें या तो किसी प्रकार का संदेश दिया या फिर लौट जाने को कहा क्योंकि दुनिया छोड़ने का उनका सही समय अभी आया नहीं था।
इस तरह के अनुभव की कोई वैज्ञानिक व्याख्या तो नहीं है लेकिन अध्यात्म की नजर से इसे तर्कपूर्ण समझा जा सकता है। अध्यात्म यह मानता है कि चेतना शरीर से अलग हो सकती है और फिर वापस से शरीर में प्रवेश कर सकती है। कई लोगों ने ये दावा किया है कि जब उनका शरीर कोमा में था, तो उनकी चेतना ने दूसरे आयाम तक की यात्रा की जहाँ उन्हें अपना कोई करीबी या कोई मार्गदर्शक मिला जिसकी मृत्यु हो चुकी थी और जिन्होंने उन्हें या तो किसी प्रकार का संदेश दिया या फिर लौट जाने को कहा क्योंकि दुनिया छोड़ने का उनका सही समय अभी आया नहीं था।
2. आँखों के आगे पूरा गुजरा जीवन नजर आना
कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी और मौत दोनों को करीब से देखा। यानि उनकी धड़कन बंद हो चुकी थी लेकिन शरीर में चेतना मौजूद थी जो संसार में अपने बिताये पूरे जीवन को एक फ्लैशबैक की तरह देख रही थी, जैसे कि उनका पूरा जीवन उनके सामने एक सिनेमा की तरह चल रहा हो। ये अनुभव बहुत सारे लोगों को मौत के करीब पहुंचकर होता है और इसका कारण मनोवैज्ञानिक जीवन छोड़ने का डर और पछतावा बताते हैं।
कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी और मौत दोनों को करीब से देखा। यानि उनकी धड़कन बंद हो चुकी थी लेकिन शरीर में चेतना मौजूद थी जो संसार में अपने बिताये पूरे जीवन को एक फ्लैशबैक की तरह देख रही थी, जैसे कि उनका पूरा जीवन उनके सामने एक सिनेमा की तरह चल रहा हो। ये अनुभव बहुत सारे लोगों को मौत के करीब पहुंचकर होता है और इसका कारण मनोवैज्ञानिक जीवन छोड़ने का डर और पछतावा बताते हैं।
3. खुद को अपने शरीर से ऊपर हवा में देखना
कुछ लोगों ने अपने अनुभव में यह बताया कि जब उनका कोई गंभीर सर्जरी या ऑपरेशन चल रहा था, तो उस दौरान उन्होंने खुद को अपने शरीर से बाहर पाया और वो सबकुछ देख, सुन और समझ पा रहे थे, यहां तक कि वो अपने शव के समान शरीर को भी देख रहे थे। यह उन लोगों के साथ हुआ है जिनके ब्रेन को डॉक्टरों ने सर्जरी के दौरान मृत घोषित कर दिया था। यह भी शरीर से बाहर चेतना के मौजूद होने का एक उदाहरण है।
4. रोशनी की ओर यात्रा करना
कुछ लोग जिन्होंने किसी दुर्घटना में अपना शरीर कुछ समय के लिए छोड़ा, उन्होंने दावा किया कि शरीर छोड़ने के बाद वो एक टनल से होते हुए एक रोशनी की तरफ बढ़े। वो रोशनी उन्हें शायद उस परमात्मा की ओर ले जा रही थी। कुछ ने तो यह भी दावा किया कि भगवान एक पुरुष हैं। उन्होंने उस अनुभव को मन को बहुत शांत करने वाला और अत्यधिक आनंदमयी बताया।
कुछ लोग जिन्होंने किसी दुर्घटना में अपना शरीर कुछ समय के लिए छोड़ा, उन्होंने दावा किया कि शरीर छोड़ने के बाद वो एक टनल से होते हुए एक रोशनी की तरफ बढ़े। वो रोशनी उन्हें शायद उस परमात्मा की ओर ले जा रही थी। कुछ ने तो यह भी दावा किया कि भगवान एक पुरुष हैं। उन्होंने उस अनुभव को मन को बहुत शांत करने वाला और अत्यधिक आनंदमयी बताया।
यह उनके अवचेतन मन की कोई कल्पना हो
ये कुछ अनुभव ऐसे हैं जो वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित तो नहीं हैं लेकिन एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं। इसलिए इन्हें पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है। इन अनुभवों से एक बात जरूर सामने आती है कि मनुष्य की चेतना केवल उसके मन में नहीं होती बल्कि वह शरीर से बाहर भी मौजूद होती है या यात्रा कर सकती है। ये सारे अनुभव चेतना से जुड़े अनुभव प्रतीत होते हैं, भले ही ये हो सकता है कि उन्होंने इसे एकदम सच्चे लगने वाले स्वप्न में देखा हो या यह उनके अवचेतन मन की कोई कल्पना हो।
ये कुछ अनुभव ऐसे हैं जो वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित तो नहीं हैं लेकिन एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं। इसलिए इन्हें पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है। इन अनुभवों से एक बात जरूर सामने आती है कि मनुष्य की चेतना केवल उसके मन में नहीं होती बल्कि वह शरीर से बाहर भी मौजूद होती है या यात्रा कर सकती है। ये सारे अनुभव चेतना से जुड़े अनुभव प्रतीत होते हैं, भले ही ये हो सकता है कि उन्होंने इसे एकदम सच्चे लगने वाले स्वप्न में देखा हो या यह उनके अवचेतन मन की कोई कल्पना हो।