छत्तीसगढ़ राज्य आदिम संस्कृति कला एवं साहित्य संस्थान ने किया धनकुल एक परिचर्चा का आयोजन
कांकेर 05 दिसंबर 2024,
छत्तीसगढ़ राज्य आदिम संस्कृति,कला एवं साहित्य संस्थान के अध्यक्ष श्री ललित नरेटी श्री संदीप सलाम सचिव श्री प्रविण दुग्गा कोषाध्क्ष, श्री राजेन्द्र उसेन्डी,एवं सह आयोजक गण श्री लखमू राम कोसमा,घासी बढ़ई,गौरव तेता, रविप्रकाश कोर्राम,जुनऊ नरेटी,रेवा रावटे,मनीष कोरेटी,कुबेर कोसमा,हरेश मरकाम,किशोर तेता,अंकिता नाग ,खिलेश्वर कोसमा,सुरेश भुआर्य,टिनु नुरूटी समस्त ग्रामवासी जंजाली पारा (हल्बा समाजिक भवन )कोरर के द्वारा 13.10.2024 रविवार को” धनकुल एक परिचर्चा” का आयोजन प्रबुद्ध सियान श्री मुराहा राम राना , श्रीमती शुभिया बाई कोलियारा, श्री मतेसिंह भोयर की उपस्थिति में किया गया इस परिचर्चा में महिला, पुरूष, युवा-युवती ,बच्चे भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे । धनकुल गीत एवं वाद्य यंत्र तथा मातृभाषा हल्बी पर अपनी व्याख्यान में लोक साहित्यकार श्री कृष्ण पाल राणा (राज्यपाल पुस्कार),श्री भागेश्वर पात्र, श्री दामेसाय बघेल ने हल्बा समाज एवं सर्व आदिवासी समाज की उपस्थित में प्रस्तुतीकरण किया। धनकुल गीत एवं वाद्य यंत्र तथा मातृभाषा हल्बी पर प्रकाश डाला गया ।धनकुल गीत अलिखित एवं मौखिक साहित्य है, एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तांतरित कला संस्कृति है। जो इस वाद्य यंत्र को बांस से धनुष ,सूपा और खिरनी काड़ी तैयार किया जाता है।धनुष में लगाया गया सिहाड़ी डोरी। इसी डोरी को झीकन डोरी कहते हैं। हांडी को रखने के लिए पैरा से बनाया गया गोल आकृति की गुन्डरी की आवश्यकता होती है। समतल जगह पर गुन्डरी रखा जाता है, गुन्डरी में रखा हुआ हांडी वादक की ओर झुका हुआ स्थिति में रखा जाता है। हांडी के मुंह में सुपा को उल्टा करके ढक दिया जाता है। उल्टा धनुष के एक छोर को सूपा पर हांडी के मुंह के मध्य जगह पर रखा जाता है, धनुष के एक छोर जमीन में रखा जाता है।उल्टा धनुष के बराबर वादक के बैठने के लिए लकड़ी का पीढ़ा की आवश्यकता होती है,पीढ़ा में बैठकर धनुष को जंघा एवं पीन्डरी दबाकर रखा जाता है।धनुष के ऊपरी भाग में 15से 20 खांचे होते हैं।इस खांचे में दांयें हाथ से खिरनी काड़ी की खपचे से धीरे धीरे घर्षण किया जाता है। और बांयें हाथ से झीकन डोरी को गीतों के अंतराल में खीचना पड़ता है। जिससे निकलने आवाज छर छर छर घुम छर घुम छर की मधुर एवं मनमोहक प्रकृति ध्वनी निकलती है । इस कार्यशाला में ग्राम बांगाचार (दुर्गूकोन्दल) निवासी धनकुल के व्यवस्थापक श्री शिवप्रसाद बघेल, गायिका बड़े गुरुमांय सुश्री गीता मांझी श्रीमती मालती बघेल,कु गायत्री नाग, श्रीमती पुष्पा बघेल, श्रीमती ललीता बघेल,कु. सुकमा बघेल आदि ने धनकुल गीत की मनमोहक प्रस्तुति दी गई। यह वाद्य यंत्र प्रकृति पर्यवरण वस्त से तैयार किया गया है, यह धनकुल गीत एवं वाद्य यंत्र पुरखों से विरासत में प्राप्त हुई है। यह धनकुल गीत तीजा पर्व एवं अन्य पर्व पर भी गाया जाता है। आधुनिक दौर में धनकुल गीत एवं वाद्य यंत्र लुप्त होने के कगार पर है। सदियों से चली आ रही आदिम कला संस्कृति की संरक्षण तथा संवर्धन के उद्देश्य से ” धनकुल एक परिचर्चा” एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित किया गया। आयोजन के लिए छत्तीसगढ़ राज्य आदिम संस्कृति,कला एवं साहित्य संस्थान का अखिल भारतीय आदिवासी हल्बा समाज धन्यवाद ज्ञापित करता है।आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर द्वारा रिपोर्टियर से सम्मानित दामेसाय बघेल (व्याख्याता)
शासकीय हाई स्कूल अनुपपुर पी व्ही 127 जिला उत्तर बस्तर कांकेर छत्तीसगढ़।