रेशम विभाग एवं महात्मा गांधी नरेगा के समन्वित प्रयासों से भिलाई में अर्जुन पौधरोपण एवं जल संरक्षण कार्यों ने दिलाई नई दिशा

रेशम विभाग एवं महात्मा गांधी नरेगा के समन्वित प्रयासों से भिलाई में अर्जुन पौधरोपण एवं जल संरक्षण कार्यों ने दिलाई नई दिशा

स्व-सहायता समूह ने कृमिपालन से बदली आर्थिक तस्वीर, कोसा उत्पादन में स्थापित की पहचान

 

जांजगीर-चांपा, 16 जून 2025// जिले के बलौदा विकासखंड के ग्राम पंचायत भिलाई में संचालित स्व-सहायता समूहों ने रेशम (कोसा) उत्पादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल कर जिले में नई पहचान बनाई है। इस कार्य में रेशम विभाग एवं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की सहभागिता ने निर्णायक भूमिका निभाई है।
स्व-सहायता समूहों ने कृमिपालन (रेशम के कीड़ों का पालन) कर आत्मनिर्भरता की मिसाल प्रस्तुत की है। समूह की महिलाओं एवं पुरुषों ने मिलकर कोसा उत्पादन से अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है तथा अन्य ग्रामीणों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बने हैं। लंबे समय की मेहनत का प्रतिफल यह सफलता एक दिन की नहीं, बल्कि सतत् मेहनत और समर्पण का परिणाम है। वर्ष 2001-02 से प्रारंभ हुई रेशम विभाग ने अपने विभागीय मद से 64 हजार अर्जुन के पौधे लगाए। रेशम विभाग और मनरेगा के अभिसरण से वर्ष 2015-16 ग्राम भिलाई में प्रथम चरण में 20,500 अर्जुन पौधों का रोपण किया गया और 42000 पौधों की नर्सरी तैयार की गई। इस तरह से वर्तमान में 78,685 अर्जुन के पौधे जीवित हैं। मनरेगा मद से अर्जुन पौधों के रोपण, जल संरक्षण और वृक्षों की देखरेख हेतु 3.15 लाख, पौधरोपण हेतु, 5.54 लाख, जल संवर्धन के कार्य के लिए, 5.18 लाख रूपए की स्वीकृति दी गई, जिससे पौधों का संरक्षण बेहतर हुआ। पौधरोपण क्षेत्र में सीपीटी खनन किया गया इसके साथ ही 10.197 लाख पौधों की नर्सरी निर्माण हेतु स्वीकृत किए गए। इस पहल से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिला बल्कि स्थानीय मजदूरों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध हुआ। महात्मा गांधी नरेगा से 9 हजार 884 मानव दिवस का सृजन करते हुए मनरेगा श्रमिकों को नियमित रोजगार मिला।

स्वावलंबन की ओर एक ठोस कदम

स्वावलंबन स्व-सहायता समूह के अध्यक्ष श्री चंद्रकुमार एवं सदस्य कविता बाई, रविन्द्र, धर्मवीर, सुशीलाबाई, क्रांतिबाई, शिवकुमार, लक्ष्मीन बाई, प्रियांशु, संतकुमार आदि द्वारा अर्जुन के वृक्षों में कृमिपालन करते हुए कोसाफल की वार्षिक दो फसलें ली जा रही हैं। इससे समूह के प्रत्येक सदस्य को 50,000 से 60,000 रुपये की आय प्राप्त हो रही है। महिलाओं ने विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर वैज्ञानिक ढंग से कोसा पालन प्रारंभ किया। गुणवत्ता में सुधार और निरंतर मेहनत से कोसा उत्पादन स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय हो गया है।

सशक्तिकरण एवं प्रेरणा का स्रोत

कोसा उत्पादन ने महिलाओं को आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त किया है। आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास की भावना को बल मिला है। यह समूह आज अन्य गांवों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुका है। रेशम विभाग एवं मनरेगा के अभिसरण से अर्जुन पौधरोपण जैसे कार्यों ने न केवल हरित पर्यावरण की दिशा में योगदान दिया है, बल्कि ग्रामीण आजीविका संवर्धन को भी नई दिशा दी है।

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